Wednesday 14 May 2014

युवा जोश ?

               भारत विविधताओं का देश है | यहाँ विभिन्न प्रकार की अनेकता हैं | परन्तु इन्ही विभिन्नताओं में एकता ढूंड निकालना ही हमारी असली काबिलियत है | यह विविधताएँ समाज द्वारा बनाए गये पहलुओं और सत्ता में बैठे बुद्धि बलिहरियों के कुछ नियमों पे निर्भर करती हैं | उदाहरण स्वरूप : अमीर और ग़रीब के बीच का अंतर, यह बहुत हद तक समाज द्वारा बनाया गया है | या आज के नवनिर्मित शहरी भारत में जाति के नाम पे किया जाने वाला अंतर, सरकार की गैर-अनुशासित ढंग से किए जाने वाले कर्मों का फल है | इन सभी अंतरों और विविधताओं के बीच हम में एक जुड़ाव है | यही जुड़ाव हमे देश की प्रगति की ओर अग्रसर करेगा |
              देश कई वर्गों में बँटा हुआ है | और इसके पीछे कई कारण हैं | वर्गों के वर्णन में समय व्यतीत नही करते हैं | लेकिन यहाँ विचारात्मक बात यह है की ऐसा कौन सा वर्ग है जो देश को सबसे अधिक हानि या लाभ पंहुचा सकता है | यह वर्ग है युवा वर्ग | स्फूर्ति और नए विचारों से परिपूर्ण इस वर्ग को यदि सही अवसर और काम करने का सही उद्देश्य मिले तो इनके लिए कोई भी काम असंभव नही है |  अपनी एक नयी पहचान बनाने के जुनून को यदि सही दिशा प्रदान की जाए तो इनके लिए कुछ भी संभव है | लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमारे देश में ७४ प्रतिशत जनता ४० से कम उम्र की है |  फिर आख़िर क्या वजह है की यह देश प्रगति की राह पर बढ़ तो रहा है पर बड़ी ही धीमी गति से |
              आज का युवा वर्ग बड़ा ही खाली होता है | खाली समय नौजवानों की आदत होती है | घुमा फिरा के हर बात राजनीति पे ले आते हैं | और राजनीति से जी ऊब जाए तो प्यार मुहब्बत के चर्चे शुरू हो जाते हैं | श्याम बेनेगल कहते हैं : आम ज़िंदगी में १० बरस ऐसे होते हाँ जब हम प्रेम करते हैं | और उन दस बरस में खाना पीना, आर्थिक संघर्ष , पढ़ाई लिखाई, घूमना फिरना, मित्र गोष्ठी, सिनेमा इन सबसे जब टाइम बचता है, तभी तो हम प्रेम करते हैं | लेकिन कई विद्वान मानते हैं की प्रेम का सामाजिक स्थितियों से कुछ संबंध है | प्रेम महज़ रूमानी, रहस्यमय और अत्यंत निजी भावना नही है, उसकी नीव आर्थिक व्यवस्था पर स्थापित है | वर्ग संघर्ष पर इसका आधार है | आज कल का प्रेम आर्थिक स्थितियों से अनुशासित तो होता है, परंतु यह केवल आंशिक सत्य है | प्रेम तो सपने, संगीत और सौंदर्य भी है | लेकिन जब तक इस प्रेम में साहस नही होता जो की इन सपनो को स्माजिक सत्य में बदल सके, यह ऐसे ही गायब हो जाता है जैसे बादलों की छाया | लेकिन इन बातों में हम आर्थिक स्थितियों को नज़रअंदाज़ नही कर सकते | आज कल प्रेम सिर्फ़ किताबों और कहानियों में पाया जाता है | विद्यालयों और महाविद्यालयों में पाया जाने वाला प्रेम अधिकांश मामलों में  नव-युवा के मन में चल रही एक सामाजिक उथल पुथल का ही नतीजा होता है |
               प्रेम एक ऐसा विषय है जिसपे सदियों से किताबें लिखी जाती रही हैं, और लोग उन्हे पढ़ के अपना आपा खोते रहे हैं | सिग्मंद फ्राय्ड ने कहा है : हमारे जीवन की प्रमुख प्रेरणा प्रेम नही बल्कि उस हर्ष का अनुधावन और अन्वेषण होना चाहिए जो हमे व्यक्तिगत रूप से सार्थक लगे | अब जबकि प्रेम पे इतना कुछ लिखा जा चुका है, तो इसपर समय व्यर्थ करने में मुझे किसी प्रकार की सार्थकता नही नज़र आती | परंतु आज का युवा इस एहसास को ना केवल जीने की आकांक्षा रखता है,  बल्कि इसमें पूर्ण रूप से डूब कर अपना और अपने साथी दोनो का समय व्यर्थ करता है | प्रेम का संभव होना बहुत आवश्यक है | प्रेम तब तक संभव नही हो सकता जबतक इसे सही रूप में प्रत्यर्पित ना किया जाए |
                  रुख़ मोड़ते हैं राजनीति की तरफ | राजनीति किसी भी देश का सबसे पेचीदा विषय है | भारत में तो संविधान के अनुसार देश में हो रहे राजनैतिक बदलाव की चाभी हमारे हाथ में है | यह बात काफ़ी हद तक सही भी है और काफ़ी हद तक ग़लत भी | सही इसलिए क्योंकि यदि ७४ प्रतिशत जनता एक मत होकर कोई निर्णय ले तो इसे कोई भी नही नकार सकता | परंतु ग़लत इसलिए की उपर दिया गया आँकड़ा सिर्फ़ किताबों के लिए है | उसी तरह से जैसे की प्रेम सिर्फ़ किताबों के पन्नो में अच्छा लगता है | वैसे ही ये आँकड़े भी सिर्फ़ आदर्श परिशितियों में ही अच्छे लगते हैं | सच्चाई यह है की आज का नौजवान शिक्षा के अभाव के कारण किसी एक व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष के अधीन है | शिक्षा के अभाव के कारण ये नौजवान नये विचारों का मनोविशलेषन करने में असक्षम हैं | यही नही, शिक्षित नौजवान भी या तो अत्यंत रूप से  व्यस्त हैं, या व्यस्त होने का दिखावा कर रहे हैं | कोई भी राजनीति के कीचड़ में उतार कर उसे साफ़ करने की चेष्ठा नही करता | करे भी क्यूँ भला | ऐसा करने वाले या तो राजनैतिक महारथियों द्वारा मार दिए जाते हैं या फिर कचहरी के चक्कर काटते काटते थक जाते हैं | इस नौकरशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले यदि एकजुट होकर इन्हे उखाड़ फेंकने में कामयाब रहे तो यह देश और उनके लोगों के लिए असीम कृपा होगी | दिल्ली की जनता ने अपना मत दिया और १५ सालों से गैर ज़िम्मेदाराना ढंग से चली आ रही सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया | दिल्ली ही नही, पूरे देश की जनता को राजनीति में विकल्प की जगह  वैकल्पिक राजनीति की आवश्यकता है | इसके लिए दिल्ली में की गयी शुरुआत तो काफ़ी अच्छी है पर जिस सरकार को बनने में २ साप्ताह से ज़्यादा लग गये, क्या वो सही समय काल में अपने किए हुए वादों को पूरा कर पाएगी | यह देखने योग्य होगा | इस पूरी मुहिम के पीछे यदि कोई सबसे बड़ी ताक़त है तो वो है युवा शक्ति | हर मोर्चे पर युवा शक्ति ने अपना काम बेहद सुचारू रूप से किया और इस आम आदमी की इस जीत के असली हक़दार बने | यही है "यंग इंडिया" की ताक़त |
                 देश के उत्थान में आ रही कमी की असली वजह भी यहीं से शुरू होती है | राजनीति में देश की युवा पीढ़ी का हिस्सा ना लेना | हिस्सा लेने वालों को उनकी काबिलियत अनुसार फल ना प्राप्त होना देश के युवा को राजनीति से दूर ले जाती है | राजनीति एक साधना है | एक कला है | इसे सही सुचारू रूप से करने के लिए चाहिए दृढ़-संकल्प और पीछे ना हटने की क्षमता | राजनीति के दुर्गम मार्ग पर चलते हुए बदलाव के स्वप्न देखना बहुत ही बड़ी बात है | यह काम सबसे आसानी से युवा वर्ग द्वारा किया जा सकता है | देखना यह होगा कि आम आदमी को राजनैतिक अखाड़े में उतारने के बाद देश का  युवा अपनी दिशा कैसे निर्धारित करता है | यही दिशा देश की दशा निर्धारित करेगी |

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