Tuesday 13 May 2014

उम्मीद

ज़िंदगी के उन अनसुने पहलुओं के पीछे की कहानी,
जब ज़िंदा होकर भी पल पल मर रहा था मैं |
अल्हैद्गि के उन कयामत भरे रातों की कहानी,
जब अंधेरो में अपना आशियाँ खोज रहा था मैं | 
मिल रही थी तन्हाई हर तरफ,
महफ़िल में भी सिर्फ़ खामोशी सुन रहा था मैं | 
तेरे रुखसार को दिल भूल नहीं पाता,
क़तरा क़तरा ही सही, तुझमे खो रहा था मैं | 
इस दश्त-ए-तन्हाई में अब्शार दे देता कोई,
वो फिराक़ की रात नही भूल पा रहा था मैं |
तेरे साँस की आँच अब भी महसूस करता हूँ,
तेरी खुश्बू को अपने अंदर बसा रहा था मैं | 
आज फिर शायद तेरे रुखसार पे वो हया दिखी थी मुझे,
आज फिर उठ रही थी कही क़ुरबत से तेरी साँस की आँच,
शायद आज फिर तू मुझे वैसे ही देखेगी और मैं तुझे,
शायद आज ढल जाएगा हिज्र का दिन और आएगी वस्ल की रात |  

 

  

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